Thursday, July 23, 2020

रैन निराशा आए कौन

रैन निराशा आए कौन।
सोए भाग जगाए कौन।।

प्रीति की रीति ही ऐसी है।
इस दिल को समझाए कौन।।

गहरे सागर की तह से।
सच्चे मोती लाए कौन।।

अब किस का विश्वास करें।
झूठी कसमें खाए कौन।।

आने वाला कोई नहीं।
खिड़की द्वार सजाए कौन।।

दीपक राग अलापें भक्त।
लेकिन मेघा गाए कौन।।

-ठा॰ गंगाभक्त सिंह भक्त

पास आकर भी दूर हैं कितने

पास आकर भी दूर हैं कितने।
मिलने से मजबूर हैं कितने।।

दारो रसन तक इनकी शोहरत।
दीवाने मशहूर हैं कितने।।

ये कैसा पथराव हुआ है।
आइना खाने चूर हैं कितने।।

उन आँखों का फैज करम है।
पूछो मत मखमूर हैं कितने।।

जीने का दस्तूर नहीं है।
मरने के दस्तूर हैं कितने।।

-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त

मैं हूँ पहरेदार खुदा की बस्ती का

मैं हूँ पहरेदार खुदा की बस्ती का।
यानी फर्ज गुजार खुदा की बस्ती का।।

मुझको आकर सारे भेद बताता है।
एक-एक चोर चकार खुदा की बस्ती का।।

सब कठिनाई हल होती है डंडे से।
डंडा है ग़मखार खुदा की बस्ती का।।

जिस चिड़िया के बच्चे को देखा, निकला।
पक्का रिश्तेदार खुदा की बस्ती का।।

खास किसी इंसां में न देखो भक्त मुझे।
मैं हूँ एक किरदार खुदा की बस्ती का।।

-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त

सौ बहाने हैं मुस्कारने के

सौ बहाने हैं मुस्कारने के।
लाख अन्दाज़ ग़म छुपाने के।।

मेरी बर्बादियों का रंज न कर।
दिन हैं जश्न-ए-तरब मनाने के।।

बिजलियों की चमक पै शैदा हुए।
जो मुहाफ़िज थे आशियाने के।।

फिर कोई अहदे मोतबर यारो।
हौसले हैं फरेब खाने के।।

पहले तुम मेहरबान होके मिले।
फिर मसायब मिले ज़माने के।।

ये तगाफुल ये खुद फरामोशी।
सब जतन हैं तुझे भुलाने के।।

आज के लोग भी खिलौने हैं ।
चन्द कौड़ी के, चन्द आने के।।

-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त

पाण्डवों की जिंन्दगी संकट में है

पाण्डवों की जिंन्दगी संकट में है।
कृष्ण आओ द्रोपदी संकट में है ।।

किससे दिल की बात कहने जाएँ हम।
जो भी मिलता है वही संकट में है।।

आगे आगे चल रहे हैं हादसे।
घर से निकला यात्री संकट में है।।

कौन इस युग में हरेगा दुःख मेरे।
खुद ही इस युग का हरी संकट में है।।

झूठ के सिर पर मुकुट है विक्रमी।
भक्त सच्चा आदमी संकट में है।।

-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त

जब से यह देखे हैं बतियाने नैन


जब से यह देखे हैं बतियाने नैन
फूलों की बरसा से बरसाते बैन
डोल गया डोल गया, डोल गया मन।
जीवन में आया नयापन।।

प्यार भरे मौसम की भाषा है मौन
अन्तर पट खोल गया गया है जाने कौन
एक दूसरे को आओ नैन मूँद देखे
जंजाली दुनिया को एक ओर फेकें
प्राण हमें एक मिला गूँगे दो तन।
जीवन में आया नयापन।।

सांसों में घुलने लगी चम्पा की गंध
सदियों के टूट गए सारे अनुबंध
कल्पना के पंखों से आसमान छूलें
और कभी भावों के झूले पे झूलें
होने न पाए कभी प्रीति अपावन।
जीवन में आया नयापन।।

अलकों संग खेल रही चन्दनी बयार
झुकी-झुकी पलकों में मुस्काए प्यार
फूल से कपोल हुए शर्म से गुलाबी
मदमाते नैन लगें जन्म के शराबी
कर रहा है तुमपे पवन तन मन अर्पन
जीवन में आया नयापन।।

-पवन बाथम
कायमगंज

Saturday, July 11, 2020