पास आकर भी दूर हैं कितने।
मिलने से मजबूर हैं कितने।।
दारो रसन तक इनकी शोहरत।
दीवाने मशहूर हैं कितने।।
ये कैसा पथराव हुआ है।
आइना खाने चूर हैं कितने।।
उन आँखों का फैज करम है।
पूछो मत मखमूर हैं कितने।।
जीने का दस्तूर नहीं है।
मरने के दस्तूर हैं कितने।।
-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त
मिलने से मजबूर हैं कितने।।
दारो रसन तक इनकी शोहरत।
दीवाने मशहूर हैं कितने।।
ये कैसा पथराव हुआ है।
आइना खाने चूर हैं कितने।।
उन आँखों का फैज करम है।
पूछो मत मखमूर हैं कितने।।
जीने का दस्तूर नहीं है।
मरने के दस्तूर हैं कितने।।
-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त
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