सौ बहाने हैं मुस्कारने के।
लाख अन्दाज़ ग़म छुपाने के।।
मेरी बर्बादियों का रंज न कर।
दिन हैं जश्न-ए-तरब मनाने के।।
बिजलियों की चमक पै शैदा हुए।
जो मुहाफ़िज थे आशियाने के।।
फिर कोई अहदे मोतबर यारो।
हौसले हैं फरेब खाने के।।
पहले तुम मेहरबान होके मिले।
फिर मसायब मिले ज़माने के।।
ये तगाफुल ये खुद फरामोशी।
सब जतन हैं तुझे भुलाने के।।
आज के लोग भी खिलौने हैं ।
चन्द कौड़ी के, चन्द आने के।।
-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त
लाख अन्दाज़ ग़म छुपाने के।।
मेरी बर्बादियों का रंज न कर।
दिन हैं जश्न-ए-तरब मनाने के।।
बिजलियों की चमक पै शैदा हुए।
जो मुहाफ़िज थे आशियाने के।।
फिर कोई अहदे मोतबर यारो।
हौसले हैं फरेब खाने के।।
पहले तुम मेहरबान होके मिले।
फिर मसायब मिले ज़माने के।।
ये तगाफुल ये खुद फरामोशी।
सब जतन हैं तुझे भुलाने के।।
आज के लोग भी खिलौने हैं ।
चन्द कौड़ी के, चन्द आने के।।
-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त
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