Friday, July 3, 2020

आज परिन्दे

आज परिन्दे सहमे-सहमे
रहते सभी घरों में हैं
संशय धुंध सभी के मन में
उड़ते सभी अकेले हैं
घर बाहर आंतकित जीवन
फूले-फले झमेले हैं
लय,गति,ताल सभी रूठे हैं
जीवन नहीं सुरों में है
मन बुनता है मीठे सपने
जीवन हो नन्दन कानन
पुष्पित हो हर डाली-डाली
निर्भय हों आँगन-आँगन
जाति धर्म के भेद कई हैं
फ़र्क न सुर असुर में है
कौन मित्र है कौन शत्रु यह
कह पाना कितना मुश्किल
संवेदन की गाँठें उलझी
कौन सुने,मन की हलचल
भेद कुहासा उड़ता जाए
ताकत नहीं परों में है।
     
-तूलिका सेठ

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