Friday, July 3, 2020

नीलाम यहाँ जो

ग़ज़ल

नीलाम यहाँ जो सरे-बाज़ार हुए हैं
अब लोग वही साहिबे-किरदार हुए हैं

ऐ चारागरो ! हमको न बीमार समझना
हम उनकी मुहब्बत में गिरिफ़्तार हुए हैं

क्या ख़ूब मुहब्बत का सिला मुझको मिला है
जो भूल गए थे वो तलबगार हुए हैं

इस दौरे-तरक़्क़ी की करामात तो देखो
कल तक जो लुटेरे थे वो ज़रदार हुए हैं

उसने जो मुझे प्यार से देखा तो लगा ये
वीरान चमन फिर सभी गुलज़ार हुए हैं

ये ही तो मुहब्बत की छुअन का है करिश्मा
काग़ज़ के थे जो फूल महकदार हुए हैं

हर एक ख़बर क़त्लो-तबाही में सनी है
लगता है कि मक़्तल सभी अख़बार हुए हैं

सुनते हैं किसी की ये कब,अपनी हैं चलाते
बच्चों से तो माँ-बाप भी लाचार हुए हैं।
     
-तूलिका सेठ

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